– अगला आडमी बुलाओ।
– नैक्स्ट!
एक आदमी अपने काग़ज़ लेकर आगे आता है।
– क्या नाम है टुम्हारा?
– कीर्ति आज़ाद
– (एकदम गुस्से में खड़े होकर) साला बाग़ी! टुमको आज़ाडी मांगटा?
– नहीं साहब …
– साला, झूट बोलटा! ए सिपॉय सीटाराम!
– जी, हुज़ूर!
– इस बागी को उढर मैडान में लेजाके डो सौ कोड़े लगाओ।
– पर साहब, मैं तो आपके खिलाफ़ नहीं हूँ!
– साला, फिर झूट बोलटा!
– गुस्ताखी मुआफ़, हुजूर, पर ये सही कह रहा है। ये तो दोस्त रियासत की दोस्त पार्टी का है। हिंदुस्तान में बी जे पी का एम पी है। हिंदुस्तान के बारे में तो आप जानते ही हैं, और इसकी पार्टी भी बड़ी वफ़ादार पार्टी है। हिंदुस्तान की सबसे वफ़ादार पार्टी है।
– टो ये अपने नाम में आजाड काए को लगाए है? खैर, इसको लेजाके डो घंटे कोठरी में बंद कर डो।
– हुज़ूर, ये तो ज्यादती हो जाएगी। सरकार बहादुर का तो नाम है इंसाफ़ के लिए।
– टुम ठीक कहटा है। फिर भी सबक डेना टो ज़रूरी है। इसे डो घंटे उधर बेंच पर बिठा डो।
– जी हुज़ूर। बिल्कुल जाय़ज़ सज़ा मुकर्रर की है साहब ने। .. आओ, चलो।
– पर ये तो ज़्यादती है!
– अरे, ख़ैर मनाओ। तुम बी जे पी के हो और एम पी हो और यहीं से वर्ल्ड कप जीत के गए थे। अगर नहीं होते और आंध्र प्रदेश या उड़ीसा या, भगवान न करे, छत्तीसगढ़ में आंदोलन वगैरह से जुड़े होते तो कौन जाने शायद यहाँ से तुमको उठा के ले जाया जाता और एन्काउंटर भी हो सकता था।
– पर मेरे नाम में आज़ाद तो …
– पता है, पता है! पर आज़ादी का फ़ैशन अब चला गया। दुनिया आगे बढ़ गई है और तुम्हारा नाम पुराना पड़ गया है और खतरनाक बन गया है।
– अच्छा ठीक है, पर बी जे पी से क्या? राज तो अभी कौंग्रेस का है …
– कौंग्रेस के होते तो भी बच जाते। वो भी तो दोस्त पार्टी है। … तुम्हारे अकेले के साथ ही ऐसा नहीं हुआ है। दरअसल कॉरपोरेश बहादुर, जिनके राज में कभी सूरज अस्त नहीं होता, आजकल काफ़ी सख्ती बरत रही है। किसी भी तरह की बग़ावत को एकदम बर्दाश्त नहीं करेगी। तुमने सुना ही होगा, आजकल तो राष्ट्रपतियों को भी नहीं बख्शा जाता, एम पी की तो छोड़ो।
– तो दो घंटे क्या होगा?
– कुछ नहीं, आराम से बैठकर सज़ा की फ़ॉर्मेल्टी पूरी करो। यह सोच लेना किसी और को सज़ा दी जा रही है। हमारे साहब बहादुर को क्या तुम बेवकूफ़ समझते हो? ऐसे ही थोड़े ही ना कह दिया है। अब तुम एम पी हो और वर्ल्ड कप विजेता हो तो खबर तो बनेगी ही। यह खबर दूसरों के लिए सबक का काम करेगी। कोई बड़ी बात नहीं है। … और तुम्हारी पार्टी चाहे तो इसका भी चुनाव में इस्तेमाल कर सकती है … इसी आज़ाद नाम को लेकर … क्या समझे?
– पर इज़्ज़त भी तो कोई चीज़ होती है। एम पी की भी तो कुछ हैसियत होती है।
– अरे अब छोड़ो भी! अब नाम ऐसा है तो थोड़ा भुगतना तो पड़ेगा ही। ऐसा करना, वापस पहुँच कर प्रेस को एक बयान दे देना। मन हल्का हो जाएगा।